શુક્રવાર, 4 ઑક્ટોબર, 2019

આપણે  હંમેશા સાંભળતાં આવ્યા છીએ કે,
"મારો વિશ્વાસ રાખો"
તાર્કિક રીતે આ બોલનારનું સૌથી મોટું અસત્ય વચન છે.
જ્ઞાન - જાણકારી હોય તો, જ વિશ્વાસ પેદાંથાય છે.  વિશ્વાસ ઉત્પન્ન થવો, 
એ કર્મ કે ક્રિયાનું પરીણામ છે.
વ્યક્તિગત અનુભવના અંતે જ શ્રધ્ધા  પ્રગટે છે.
ભાવુકતાથી અંજાઇ જવાથી કે પ્રભાવથી "શ્રધ્ધા" પેદા ના થાય, અને આવી રીતે પ્રભાવથી પરાણે ઉત્પન્ન થઇ આવે તો એનું કોઇ વિશેષ ફળદાયી મુલ્ય હંમેશા નથી રહેતુ. 
અંતઃકરણથી તો એ બાબતે, 
આપણને હંમેશા શંકા રહે છે;  
પ્રશ્નો  ઊભા થયા કરે છે.
વિશ્વાસ કે શ્રધ્ધા જેના પ્રત્યે સ્વતઃ પ્રગટે છે,
તેની સાથે જ મૈત્રી ગમે એવા સંજોગોમાં શાશ્વત રહે છે.

બુધવાર, 2 ઑક્ટોબર, 2019

श्री सुभाष वाणी ११

लाइपोमा व वेजाइनल वार्टस   

मेदोरोग पर MD में हमने थीसिस लिखी थी तो कई सिद्धान्त स्थापित किये थे जिसमें शरीर में होने वाली मेदोज ग्रन्थियों को स्थानिक मेदोरोग माना था और इनकी चिकित्सा में विभिन्न प्रयोग की संभावनायें बनाई थी जिसे हम अब अपनी practice में प्रयोग करते हैं तो आशातीत सफलता मिलती है। इस प्रकार की मेदोज ग्रन्थियों में चिकित्सक आरोग्यवर्धिनी और कांचनार गुग्गलु का प्रयोग करते तो हैं पर उन्हे अधिक सफलता नही मिलती। अगर आप भी इस प्रकार के रोगी लें तो उनकी चिकित्सा में क्षार का प्रयोग अवश्य करें , हमारे बहुत से रोगी स्वस्थ होने पर परिचितों से कहते हैं कि वैद्यराज जी ने तो औषधियों से ही हमारी surgery कर दी।

इस प्रकार की ग्रन्थियों को समाप्त करने के लिये उष्ण तीक्ष्ण लघु रूक्ष दहन छेदन भेदन कर्षण लेखन द्रव्यों की आवश्यकता होती है जो हमें क्षार में मिलते है और इसकी चिकित्सा का सूत्र हमें चरक संहिता से ही मिला था ...

तीक्ष्णोष्णो लघुरूक्ष्ष्च क्लेदी पक्ता विदारणा:, दाहनो दीपश्च्छेता सर्व: क्षारोऽग्निसन्निभ :। च सू ।

कांचनार यवकुट 10 gm क्वाथ विधि से बनाये सुखोष्ण होने पर 500 mg शुद्ध नवसार और 2-3 gm यवक्षार, 1 gm सर्जिका क्षार मिलाकर प्रात: सांय दें, इनके साथ ही आरोग्य वर्धिनी 1-1 gm bd, कांचनार गुग्गलु 2 bd, नित्यानंद रस 2 bd दे ।

अतिरिक्त भेदन कर्म के लिये कुटकी चूर्ण 3 gm हरीतकी चूर्ण 3 gm सांय लगभग 6 बजे दें।
मधुर स्निग्ध गुरू पदार्थ अपथ्य है और पथ्य में औषध सिद्ध द्रव्यों से लघुता लाये, जैसे मूंग मसूर दाल यूष, यव + चना मिश्रित चपाती, पंचकोल मिश्रित कृशरा, लौकी, तोरई, ग्वार की फली का अधिक प्रयोग ।
जामनगर में हमें सिखाया गया कि, आरोग्य वर्धिनी और पुनर्नवा मंडूर की मात्रा 1-1 gm तीन बार दें तो निश्चित सफलता मिलेगी और मिलती है।
पुनर्नवा मण्डुर मे करीब करीब 70 प्रतिशत मण्डूर भस्म होती है। इसमे कुल 23 काष्ठ औषधी होती है और इन सब औषधियों के 2 गुनी मण्डूर भस्म होती है। गोमूत्र 8 गुणा  लेकर मण्डुर भस्म को गौमूत्र मे पकाकर 1/4 शेष रख पश्चात काष्ठ औषधी चुर्ण मिलाकर गोलीया बनाई जाती हैं। पुनर्नवा मण्डुर यह 1gm × 3 बार देने पर ,लोह या मण्डुर भस्म यह करीब करीब 1.5 to 2 gm तक हम बिना किसी डर और उपद्रव के दे सकते है।
1.5 gm  आ.वर्धिनी 3 बार देते हैं ये सत्य है, आप देखेंगे कि कोई हानि नही है आत्मविश्वास बढ़ता है और सान्निध्य में रह कर ये पता चल जाता है कि यदि कभी किसी रोगी को इसके कारण gripping pain या अति मल आ भी जाये तो वह किस प्रकार सरलता से मैनेज हो जाता है।


veginal warts की चिकित्सा में चार सिद्धान्त प्रयोग होते है, औषध ( ब्राह्य योनि प्रक्षालन एवं आभ्यंतर औषध प्रयोग) , क्षार कर्म , अग्नि कर्म एवं शस्त्र कर्म।

vagina wash के लिये स्फटिका जल अति उत्तम कार्य करता है , श्वेत प्रदर में पहली बार से लाभ मिलना आरंभ हो जाता है , दिन में 2 बार पर्याप्त है और योनि दौर्गन्ध्य की श्रेष्ठ औषध हम मानते है,
कासीसादि तैल में स्फटिका भस्म मिलाकर दे, ये शुष्कार्श, रक्तार्श और  vaginal warts में हमारा scecret formula है।


चिकित्सा करे या ना करे यह आशंकित हो के सोचने की नही, पर  करने की चीज है, जो भी  हम लिखते हैं वो हमारा अब 36 yrs. experience with evidence देते है, आंख बंद कर के भी प्रयोग करेंगे तो result जरूर मिलेगा, निर्भयता के साथ कर के देखिये आनंद मिलेगा।

श्री सुभाष वाणी १०

वैद्य सुभाष शर्मा: case presentaion -
मूत्रवाही स्रोतोदुष्टि ( prostatomegaly) की आशुकारी आयुर्वेदीय चिकित्सा व्यवस्था।

शकृन्मार्गस्य बस्तेश्च वायुरन्तरमाश्रित:।अष्ठीलाभं घनं ग्रन्थिं करेत्यचलमुन्नतम्। वाताष्ठीलेऽति साऽऽध्मानतविण्मूत्रानिलसंगकृत।।अ ह नि 9/23
अर्थात मल तथा मूत्रमार्ग मध्य स्थित अपानवायु पत्थर ढेला सदृश स्थिर ऊंची ग्रन्थि बना देता है, जिससे उदर आध्मान,मल,मूत्र, अपान वात प्रवृत्ति में बाधा उत्पन्न होती है।

चरक अनुसार ‘मूत्रकृच्छ: स य: कृच्छ्रान्मूत्रयेद्..’ अर्थात कष्ट पूर्वक मूत्र त्याग करता है और मूत्राघात पर विजयरक्षितजी की टीका माधव निदान में कहा है ‘मूत्रकृच्छ मूत्राघात तयोश्चायं विशेष: मूत्रकृच्छ्रे।
कृच्छ्रलमतिशयितं ईषद विबन्ध: मूत्राघाते कु विबन्धो बलवानं कृच्छ्रत्वमल्पमिति
अर्थात मूत्रकृच्छ्र में मूत्र कष्ट पूर्वक होता है पर मूत्राघात में आता ही नही

शास्त्र से सूत्र मिले हमने उनका विस्तार कर रोगी में prostate enlargement के सम्प्राप्ति घटक बनाये और चिकित्सा सूत्र निर्धारित कर औषध दी तो परिणाम आशा से अधिक मिले।

enlargement of prostate की चिकित्सा प्राय: 3-6 महीने तक चलती है और पूर्ण लाभ मिल जाता है, पर इस रोगी में हमने गंभीर चिन्तन कर के जो सम्प्राप्ति विघटन किया तो मात्र 28 दिन में ही रोगी स्वस्थ हो गया और rt. ureter की 11.4 mm अश्मरी को भी शरीर से बिना किसी उपद्रव या अश्मरी जन्य शूल के बाहर कर दिया।

male/age 53 yrs/ farmer
chief complaints - पुन: पुन: मूत्र प्रवृत्ति, रात्रि में 4-5 बार मूत्र त्याग, मूत्र अल्प एवं बूंद बूंद कर आना, रात्रि जागरण से शिरो गुरूता एवं अंग साद, विबंध, आध्मान, CA prostate जन्य भय, कदाचित उदर अधोभाग रूजा।

History of present illness - रोगी को तीन वर्ष से प्रोस्टेट की व्याधि के लक्षण थे जिसकी शल्य क्रिया जनवरी 2018 में की गई थी और पुन: व्याधि लक्षण होने पर अगस्त 2018 में enlarged prostate मिली।

History of past illness - कई वर्ष पूर्व मदात्यय जन्य कामला, जीर्ण कास,युवावस्था से विबंध।

Family History - संधिवात
नाड़ी - वात पित्त, व्यायाम - 30 मिनट भ्रमण,व्यसन - पूर्व में मद्यपान और अब बीड़ी सेवन, त्वक - रूक्ष,मल - विबंध,मूत्र - अल्प एवं अवरोध युक्त, स्वेद - अभाव।
उदर परीक्षण - अधोभाग में दबाने पर वेदना।

सम्प्राप्ति घटक -
दोष - अपान समान वात,पाचक पित्त, क्लेदक कफ
दूष्य - रस,पुरीष और मूत्र
स्रोतस - रस, मूत्र और पुरीषवाही
स्रोतो दुष्टि - संग
उद्भव स्थान - आमाश्य
रोगधिष्ठान - पक्वाश्य
साध्यासाध्यता - कृच्छ साध्य

चिकित्सा सूत्र - पाचन, अनुलोमन, मूत्र शोधन ( मूत्र reaction acidic ना हो इसलिये), शोथध्न, भेदन, मूत्र विरेचन और आवश्यकता पड़ने पर शूलशमन ( इसकी आवश्यकती ही नही पड़ी)

औषध ...
पाषाण भेद,पुनर्नवा,वरूण और गोखरू 100-100 gm यवकुट, इसमें से 10 gm प्रात: 10 gm सांय ले कर क्वाथ बनाकर उसमें लगभग 3 gm सर्जिका क्षार एवं 1 gm हजरूल यहूद भस्म मिलाकर खाली पेट दिया।

गोक्षुरादि गुग्गलु 3-3
कुटकी चूर्ण + हरीतकी चूर्ण 2-2 gm सांय भोजन से आधा घंटा पूर्व।
भोजन के आधा घंटा बाद शिवक्षार पाचन 3 gm+ शुद्ध नौसादर 500 mg+ यवक्षार 2 gm उष्णोदक से*
नित्यानंद रस 2-2
कांचनार गुग्गलु 2-2

अपथ्य - तिल,पालक,टमाटर,बैंगन,अचार,उष्ण तीक्ष्ण पदार्थ, चना,मैदा,अधिक स्निग्ध तैलीय पदार्थ।
पथ्य - प्रतिदिन 1-2 मूली,तोरई,यव का सत्तू, fresh खीरा,लौकी आदि।

चिकित्सा आरंभ की गई 29 अगस्त 2019 से, रोगी के पास usg report थी 25-9-18 की,हमने उसे नया usg कपाने के लिये कहा तो वह भयभीत था कि कहीं कैंसर ना बन गया हो क्योंकि जनवरी में sugery हो चुकी थी।

usg report इस प्रकार रही ...
24-8-18 -- RK middle calyx calculus 15 mm
RT ureter calculus 11.4 mm
PROSTATE - 48/44/38 mm
wt. 39.34 gm
----------------------------------------
25-9-19
RK calculus - 11.6 mm
ureter - no calculus
PROSTATE - 29/33/21 mm
wt. 15 gm
( size & wt. normal मिला)
------------------------------------
कुल चिकित्सा अवधि 28 दिन की रही जिसमें prostate का size,weight तो normal आया ही और 11.4 mm ureter calculus से भी मुक्ति मिली।रोगी का कैंसर भय दूर करने के लिये हमने PSA भी test करा दिया जो within normal range मिला।

संजीवनी में भल्लातक है, इसलिए वह आग्नेय,उष्ण तीक्ष्ण है। रूग्ण का urine alb ++++ और  s. cr increased हो तो  कभी भी इसे देने की गलती ना करे।

श्री सुभाष वाणी ९

58-60 वर्ष तक हम स्त्रियों के आर्तव ला देते है जिन्हे 32-35 वर्ष की आयु में ही रजोवरोध हो चुका होता है।

न्याय शास्त्र का एक सिद्धान्त है 'यद् पिण्डे तत्ब्रह्माण्डे'
और  'कालबुद्धिन्द्रियार्थानां योगो मिथ्या न चाति च... च सू 1/54 चरकानुसार काल का अति,मिथ्या या हीन रोग भी रोग का मूल कारण है और इसकी चिकित्सा ' विपरीतगुणैर्देशमात्राकालोपपादितै:...' च सू 1/62 अर्थात देश (जांगल आनूप शीत उष्णादि) ,मात्रा (अग्नि,अवस्था और बलागि) और काल के विपरीत गुण वाले औषध योगों से साध्य रोगों से निवृत्ति होती है।

आर्तवकाल 48-50 वर्ष तक है, यह अवस्था रोग ना मान कर काल का हीन योग माने जिसका कारण स्वभाव जैसे माता को भी early manopause होना,आहार -विहार, दिनचर्या से धातु क्षय हो कर वात वृद्धि, कुछ औषध सेवन जिनसे आर्तव काल के काल का विपर्यय आदि है।

इस अवस्था को त्रिदोषज व्याधि मान कर चले जो वात प्रधान त्रिदोषज है।अपान और व्यान वायु,पाचक पित्त और आम की उत्पत्ति होने पर क्लेदक कफ को भी मान कर चलें।इसमें रस-रक्त उपधातु आर्तव दूष्य है,रस वाही और आर्तववाही स्रोतस की संग दुष्टि ले कर चले।

चिकित्सा के लिये इसे चिकित्सा ना मान कर correction कहे और धैर्य के साथ plan of work बनाये ।पुराने समय में जब वर्षा नही होती थी तो यज्ञ करते थे क्योंकि ये काल का हीन योग है, यहां पिण्ड ब्रहमाण्ड न्यायानुसार आर्तव काल का हीन योग है, इस शरीर में भी हमे यज्ञ के लिये दो चीज चाहिये घृत एवं अग्नि , घृत अग्निदीपक है और सामग्री वो जो अग्नि की तरह उष्ण तीक्ष्ण होकर संग दोष का भेदन करे।धातुक्षय अर्थात aging disorder की स्थिति है तो आम दोष दूर करना,रसायन,बल्य,अनुलोमन,वात शमन के साथ पित्त कफ की balancing ,प्रजास्थापन,शुक्रल और बृहंण के साथ मेध्य द्रव्य , मगर उस से पहले निदान परिवर्जन और दिनचर्या का पालन।

ये सब जो हमने आपको लिखा ये इस प्रकार से मिलेगा..

कम से कम 2 महीने तक शतावरी घृत अगर जरूर दें साथ ही शतावरी,खर्जूर (dates),सारिवा ( आचार्य गिरिराज जी ने बताया था इसमें natural steroids है और अपनी practice में हमने सही पाया), बला और बीच बीच में गुडूची, ये  रस-रक्त वाही स्रोतस के लिये रसायन है और शतावरी तो आर्तववाही स्रोतस के लिये भी,नवायस लौह 500 mg bd देते रहे।

दो महीने बाद अग्नितुण्डी वटी 1-1 , रज:प्रवर्तिनी 1-1 gm tds, एलुवा 1 gm उलट कंबल 1 gm और हरमल बीज 1 gm दिन में दो बार उष्णोदक से दे ,आरोग्यवर्धिनी 1 gm bd, ये दो महीने निरंतर दे ये चार महीने का चिकित्सा क्रम है , हमें निरंतर report देते रहे ।


ग्रुप में हम कूष्मांड स्वरस के प्रयोग पर बहुत लिखते रहे है कि ये किसी भी allopathic antacid से कहीं अधिक उत्तम है अगर विधि पूर्वक दिया जाये, इसी प्रकार आमलकी स्वरस, मधुयष्ठी प्रयोग पर भी विद्वान अपने अनुभव देते ही रहते है, नीचे article पढ़कर आप शायद समझ जायें कि अब समय आ गया है कि प्रवाल पंचामृत, कामदुधा, यष्टिमधु,आमलकी आदि का युग ही चलेगा...




નવરાત્ર-2 માઁ દુર્ગાના નવ સ્વરૂપ...

પ્રથમ નવરાત્રમાં માઁ નું સ્વરૂપ "શૈલપુત્રી" નું છે. જેમની કથા પર્વતરાજ  હિમાલયના પુત્રી સાથે જોડાયેલ  છે. માઁ નું આ સ્વરૂપ ભગવાન શ...