लाइपोमा व वेजाइनल वार्टस
मेदोरोग पर MD में हमने थीसिस लिखी थी तो कई सिद्धान्त स्थापित किये थे जिसमें शरीर में होने वाली मेदोज ग्रन्थियों को स्थानिक मेदोरोग माना था और इनकी चिकित्सा में विभिन्न प्रयोग की संभावनायें बनाई थी जिसे हम अब अपनी practice में प्रयोग करते हैं तो आशातीत सफलता मिलती है। इस प्रकार की मेदोज ग्रन्थियों में चिकित्सक आरोग्यवर्धिनी और कांचनार गुग्गलु का प्रयोग करते तो हैं पर उन्हे अधिक सफलता नही मिलती। अगर आप भी इस प्रकार के रोगी लें तो उनकी चिकित्सा में क्षार का प्रयोग अवश्य करें , हमारे बहुत से रोगी स्वस्थ होने पर परिचितों से कहते हैं कि वैद्यराज जी ने तो औषधियों से ही हमारी surgery कर दी।
इस प्रकार की ग्रन्थियों को समाप्त करने के लिये उष्ण तीक्ष्ण लघु रूक्ष दहन छेदन भेदन कर्षण लेखन द्रव्यों की आवश्यकता होती है जो हमें क्षार में मिलते है और इसकी चिकित्सा का सूत्र हमें चरक संहिता से ही मिला था ...
तीक्ष्णोष्णो लघुरूक्ष्ष्च क्लेदी पक्ता विदारणा:, दाहनो दीपश्च्छेता सर्व: क्षारोऽग्निसन्निभ :। च सू ।
कांचनार यवकुट 10 gm क्वाथ विधि से बनाये सुखोष्ण होने पर 500 mg शुद्ध नवसार और 2-3 gm यवक्षार, 1 gm सर्जिका क्षार मिलाकर प्रात: सांय दें, इनके साथ ही आरोग्य वर्धिनी 1-1 gm bd, कांचनार गुग्गलु 2 bd, नित्यानंद रस 2 bd दे ।
अतिरिक्त भेदन कर्म के लिये कुटकी चूर्ण 3 gm हरीतकी चूर्ण 3 gm सांय लगभग 6 बजे दें।
मधुर स्निग्ध गुरू पदार्थ अपथ्य है और पथ्य में औषध सिद्ध द्रव्यों से लघुता लाये, जैसे मूंग मसूर दाल यूष, यव + चना मिश्रित चपाती, पंचकोल मिश्रित कृशरा, लौकी, तोरई, ग्वार की फली का अधिक प्रयोग ।
जामनगर में हमें सिखाया गया कि, आरोग्य वर्धिनी और पुनर्नवा मंडूर की मात्रा 1-1 gm तीन बार दें तो निश्चित सफलता मिलेगी और मिलती है।
पुनर्नवा मण्डुर मे करीब करीब 70 प्रतिशत मण्डूर भस्म होती है। इसमे कुल 23 काष्ठ औषधी होती है और इन सब औषधियों के 2 गुनी मण्डूर भस्म होती है। गोमूत्र 8 गुणा लेकर मण्डुर भस्म को गौमूत्र मे पकाकर 1/4 शेष रख पश्चात काष्ठ औषधी चुर्ण मिलाकर गोलीया बनाई जाती हैं। पुनर्नवा मण्डुर यह 1gm × 3 बार देने पर ,लोह या मण्डुर भस्म यह करीब करीब 1.5 to 2 gm तक हम बिना किसी डर और उपद्रव के दे सकते है।
1.5 gm आ.वर्धिनी 3 बार देते हैं ये सत्य है, आप देखेंगे कि कोई हानि नही है आत्मविश्वास बढ़ता है और सान्निध्य में रह कर ये पता चल जाता है कि यदि कभी किसी रोगी को इसके कारण gripping pain या अति मल आ भी जाये तो वह किस प्रकार सरलता से मैनेज हो जाता है।
veginal warts की चिकित्सा में चार सिद्धान्त प्रयोग होते है, औषध ( ब्राह्य योनि प्रक्षालन एवं आभ्यंतर औषध प्रयोग) , क्षार कर्म , अग्नि कर्म एवं शस्त्र कर्म।
vagina wash के लिये स्फटिका जल अति उत्तम कार्य करता है , श्वेत प्रदर में पहली बार से लाभ मिलना आरंभ हो जाता है , दिन में 2 बार पर्याप्त है और योनि दौर्गन्ध्य की श्रेष्ठ औषध हम मानते है,
कासीसादि तैल में स्फटिका भस्म मिलाकर दे, ये शुष्कार्श, रक्तार्श और vaginal warts में हमारा scecret formula है।
चिकित्सा करे या ना करे यह आशंकित हो के सोचने की नही, पर करने की चीज है, जो भी हम लिखते हैं वो हमारा अब 36 yrs. experience with evidence देते है, आंख बंद कर के भी प्रयोग करेंगे तो result जरूर मिलेगा, निर्भयता के साथ कर के देखिये आनंद मिलेगा।
मेदोरोग पर MD में हमने थीसिस लिखी थी तो कई सिद्धान्त स्थापित किये थे जिसमें शरीर में होने वाली मेदोज ग्रन्थियों को स्थानिक मेदोरोग माना था और इनकी चिकित्सा में विभिन्न प्रयोग की संभावनायें बनाई थी जिसे हम अब अपनी practice में प्रयोग करते हैं तो आशातीत सफलता मिलती है। इस प्रकार की मेदोज ग्रन्थियों में चिकित्सक आरोग्यवर्धिनी और कांचनार गुग्गलु का प्रयोग करते तो हैं पर उन्हे अधिक सफलता नही मिलती। अगर आप भी इस प्रकार के रोगी लें तो उनकी चिकित्सा में क्षार का प्रयोग अवश्य करें , हमारे बहुत से रोगी स्वस्थ होने पर परिचितों से कहते हैं कि वैद्यराज जी ने तो औषधियों से ही हमारी surgery कर दी।
इस प्रकार की ग्रन्थियों को समाप्त करने के लिये उष्ण तीक्ष्ण लघु रूक्ष दहन छेदन भेदन कर्षण लेखन द्रव्यों की आवश्यकता होती है जो हमें क्षार में मिलते है और इसकी चिकित्सा का सूत्र हमें चरक संहिता से ही मिला था ...
तीक्ष्णोष्णो लघुरूक्ष्ष्च क्लेदी पक्ता विदारणा:, दाहनो दीपश्च्छेता सर्व: क्षारोऽग्निसन्निभ :। च सू ।
कांचनार यवकुट 10 gm क्वाथ विधि से बनाये सुखोष्ण होने पर 500 mg शुद्ध नवसार और 2-3 gm यवक्षार, 1 gm सर्जिका क्षार मिलाकर प्रात: सांय दें, इनके साथ ही आरोग्य वर्धिनी 1-1 gm bd, कांचनार गुग्गलु 2 bd, नित्यानंद रस 2 bd दे ।
अतिरिक्त भेदन कर्म के लिये कुटकी चूर्ण 3 gm हरीतकी चूर्ण 3 gm सांय लगभग 6 बजे दें।
मधुर स्निग्ध गुरू पदार्थ अपथ्य है और पथ्य में औषध सिद्ध द्रव्यों से लघुता लाये, जैसे मूंग मसूर दाल यूष, यव + चना मिश्रित चपाती, पंचकोल मिश्रित कृशरा, लौकी, तोरई, ग्वार की फली का अधिक प्रयोग ।
जामनगर में हमें सिखाया गया कि, आरोग्य वर्धिनी और पुनर्नवा मंडूर की मात्रा 1-1 gm तीन बार दें तो निश्चित सफलता मिलेगी और मिलती है।
पुनर्नवा मण्डुर मे करीब करीब 70 प्रतिशत मण्डूर भस्म होती है। इसमे कुल 23 काष्ठ औषधी होती है और इन सब औषधियों के 2 गुनी मण्डूर भस्म होती है। गोमूत्र 8 गुणा लेकर मण्डुर भस्म को गौमूत्र मे पकाकर 1/4 शेष रख पश्चात काष्ठ औषधी चुर्ण मिलाकर गोलीया बनाई जाती हैं। पुनर्नवा मण्डुर यह 1gm × 3 बार देने पर ,लोह या मण्डुर भस्म यह करीब करीब 1.5 to 2 gm तक हम बिना किसी डर और उपद्रव के दे सकते है।
1.5 gm आ.वर्धिनी 3 बार देते हैं ये सत्य है, आप देखेंगे कि कोई हानि नही है आत्मविश्वास बढ़ता है और सान्निध्य में रह कर ये पता चल जाता है कि यदि कभी किसी रोगी को इसके कारण gripping pain या अति मल आ भी जाये तो वह किस प्रकार सरलता से मैनेज हो जाता है।
veginal warts की चिकित्सा में चार सिद्धान्त प्रयोग होते है, औषध ( ब्राह्य योनि प्रक्षालन एवं आभ्यंतर औषध प्रयोग) , क्षार कर्म , अग्नि कर्म एवं शस्त्र कर्म।
vagina wash के लिये स्फटिका जल अति उत्तम कार्य करता है , श्वेत प्रदर में पहली बार से लाभ मिलना आरंभ हो जाता है , दिन में 2 बार पर्याप्त है और योनि दौर्गन्ध्य की श्रेष्ठ औषध हम मानते है,
कासीसादि तैल में स्फटिका भस्म मिलाकर दे, ये शुष्कार्श, रक्तार्श और vaginal warts में हमारा scecret formula है।
चिकित्सा करे या ना करे यह आशंकित हो के सोचने की नही, पर करने की चीज है, जो भी हम लिखते हैं वो हमारा अब 36 yrs. experience with evidence देते है, आंख बंद कर के भी प्रयोग करेंगे तो result जरूर मिलेगा, निर्भयता के साथ कर के देखिये आनंद मिलेगा।
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