नेत्र दृष्टिमांद्य एवं चश्में से मुक्ति
case presentation 7-7-2019 वैद्य सुभाष शर्मा
चरक चि. अ. 26 में नेत्र रोगों का वर्णन करते हुये, 'तेषामभिव्यक्ति... न न: प्रयास' च चि 26/131 में 96 प्रकार के नेत्र रोगोंमें से केवल चार का उल्लेख करते हुये कहा है, कि इनका अवलोकन शालाक्य तन्त्र में करना चाहिये यह पराधिकार का क्षेत्र है। सुश्रुत ने उ. तन्त्र 1/28 में वातज तथा पित्तज 10-10,कफज 13,रक्तज 16,सर्वज 25 बाह्यज 2 सहित 76 नेत्र रोगो का वर्णन करते हुये स्थान भेद से भी उल्लेख किया है। वागभट्ट ने अतिविस्तार से उत्तर स्थान में इनका वर्णन किया है, उत्तर स्थान 12 अध्याय का नाम ही दृष्टिरोगविज्ञानीय अध्याय रखा है।'
सिरानुसारिणि मले प्रथमं पटलं .....छादयेद्दृष्टिमण्डलम्।'
अ. ह. उ. 12/1-7
सिरामार्गों द्वारा अनुसरण कर के जब वातादि दोष प्रथम पटल में स्थान संश्रय कर लेते हैं तब रोगी सासांरिक स्वरूपों को पहले की भांति स्पष्ट नही देख पाता.....
च सू 14/10 में 'वृषणौ ह्रदयं दृष्टी ...मिष्टत:' में स्पष्ट कहा है कि वृषण, ह्दय और दृष्टि मंडल पर मृदु स्वेद करे या ना ही करें,अगले 11 वें श्लोक में वस्त्र का टुकड़ा , गूंथा हुआ आटा या कमल पत्रों से नेत्रों को सुरक्षित कर स्वेदन करने के लिये कहा है। चरकने नेत्र रोगों का वर्णन विस्तार से तो, नही किया पर सूत्र रूप में चिकित्सा सार दे दिया, कि नेत्र रोगों में शीत स्पर्श और शीतवीर्य औषध द्रव्य रोगी को सात्म्य रहते हैं।
रूग्णा वय : 10 वर्ष / F -
वृत्ति : student
प्रमुख वेदना : बिना चश्मा लगाये दृष्टिमांद्यता,नासा स्राव मुहुर्मुह, प्रात: काल शिरो शूल एवं गुरूता, कदाचित अत्यधिक tv देखने पर या पढ़ने से नेत्र गुरूता,चिड़चिड़ाहट ( irritating behaviour),कृश एवं दुर्बल ।
वेदनावृत्त (H/O present illness) : बालिका को लगभग 3 वर्ष से tonsilitis, गल संक्रमण,पीनस,
नासावरोध, पुन: पुन: ज्वर एवं विबंध चला आ रहा था और 6 माह पूर्व ही चश्मा लगा है।
पूर्व व्याधि वृत्त (h/o past illness) : जन्म के समय कामला रोग हुआ था जिसके कारण अनेक दिन तक tube-light एवं रोशनी में रखा गया था, तथा एक वर्ष की अवस्था तक allergic bronchitis की चिकित्सा दी गई थी।
कुल वृत्त - कोई विशिष्ट व्याधि नही।
नाड़ी : पित्त-वात,
निद्रा सम्यक, व्यायाम : अल्प, आकृति : दुर्बल+मध्यम,
त्वक : किंचित रूक्ष, मलप्रवृति: दोपहर में कदाचित विबंध,
मूत्र: सम्यक,स्वेद: सामान्य।
परीक्षा S/e : गल प्रदेश rt.side tonsilitis एवं नासा प्रदेश मे अवरोध
रोग हेतु :- अति शीत, artificial flavour, colored, synthetic एवं अभिष्यंदि पदार्थ जैसे, cold drinks, दही, ketchup, vineger, fast food etc.
रोग निदान :- पीनस जन्य दृष्टिमांद्य
सम्प्राप्ति घटक...प्राण उदान समान वात , पाचक आलोचक पित्त, क्लेदक तर्पक कफ
दूष्य - रस
स्रोतस - अन्न रस
दुष्टि - संग विमार्गगमन
जाठराग्नि - मंद
धात्वाग्नि - रसधात्वाग्निमांद्य
दोष/धातु - साम
अधिष्ठान - आभ्यंतर
कोष्ठ - मध्य
देश - साधारण / जन्म साधारण/ वृद्धि आनूप/ व्याधि
व्याधि काल - वृद्धि ऋतु संधिकाल एवं शीत/ ह्रास ग्रीष्म।
सार - रस रक्त मांस मेद अस्थि मज्जा शुक्र सत्व
10 वर्ष की अवस्था वृद्धिकाल होने से एवं व्याधि का विशिष्ट संबध ना होने से सार, संहनन आदि की विशेष आवश्यकता नही है।
साध्यतासाध्यता - साध्य
चिकित्सा सूत्र - दीपन पाचन कफछेदन कण्ठय चक्षुष्य नस्य बृहंण एवं रसायन।
औषध व्यवस्था :
1.. सितोपलादि चूर्ण 1gm+ टंकण भस्म 100 mg + श्रृंगभस्म 50 mg + सप्तामृत लौह 500 mg+ मधुयष्ठि चूर्ण 1gm मधु से प्रात: 7 बजे एवं सांय 6 बजे।
2.. महात्रिफला घृत 5-5 gm साथ में दिया गया।
प्रात खाली पेट औषध दे कर सुबह b.fast स्कूल में 10:30 पर करती थी और रात्रि भोजन 8 बजे।
3.. सोने से 1 घंटा पूर्व अणु तैल 3-3 बूंद दोनों नाक में नस्य।
4.. गंधक वटी+सुदर्शन घन वटी। भोजन के बाद दोपहर रात 1-1 गोली
5.. कण्ठय के रूप में दिन में दो बार नागरवेल के पान की जड़ का छोटा टुकड़ा चूषणार्थ।
पथ्य - भोजन गौघृत में, गौदुग्ध एवं सात्विक भोजन।
अपथ्य - सर्वप्रथम लिखे रोग के हेतु।
विहार - सुबह जल्दी उठकर 20 मिनट park में नंगे पैर हरी घास पर चलना।
चिकित्सा परिणाम :
Report इस प्रकार मिली...
10-5-2019 : Rt eye CYL +100 AXIS 90
Lt eye CYL + 025 AXIS 90
20-7-2019: clear vision
case presentation 7-7-2019 वैद्य सुभाष शर्मा
चरक चि. अ. 26 में नेत्र रोगों का वर्णन करते हुये, 'तेषामभिव्यक्ति... न न: प्रयास' च चि 26/131 में 96 प्रकार के नेत्र रोगोंमें से केवल चार का उल्लेख करते हुये कहा है, कि इनका अवलोकन शालाक्य तन्त्र में करना चाहिये यह पराधिकार का क्षेत्र है। सुश्रुत ने उ. तन्त्र 1/28 में वातज तथा पित्तज 10-10,कफज 13,रक्तज 16,सर्वज 25 बाह्यज 2 सहित 76 नेत्र रोगो का वर्णन करते हुये स्थान भेद से भी उल्लेख किया है। वागभट्ट ने अतिविस्तार से उत्तर स्थान में इनका वर्णन किया है, उत्तर स्थान 12 अध्याय का नाम ही दृष्टिरोगविज्ञानीय अध्याय रखा है।'
सिरानुसारिणि मले प्रथमं पटलं .....छादयेद्दृष्टिमण्डलम्।'
अ. ह. उ. 12/1-7
सिरामार्गों द्वारा अनुसरण कर के जब वातादि दोष प्रथम पटल में स्थान संश्रय कर लेते हैं तब रोगी सासांरिक स्वरूपों को पहले की भांति स्पष्ट नही देख पाता.....
च सू 14/10 में 'वृषणौ ह्रदयं दृष्टी ...मिष्टत:' में स्पष्ट कहा है कि वृषण, ह्दय और दृष्टि मंडल पर मृदु स्वेद करे या ना ही करें,अगले 11 वें श्लोक में वस्त्र का टुकड़ा , गूंथा हुआ आटा या कमल पत्रों से नेत्रों को सुरक्षित कर स्वेदन करने के लिये कहा है। चरकने नेत्र रोगों का वर्णन विस्तार से तो, नही किया पर सूत्र रूप में चिकित्सा सार दे दिया, कि नेत्र रोगों में शीत स्पर्श और शीतवीर्य औषध द्रव्य रोगी को सात्म्य रहते हैं।
रूग्णा वय : 10 वर्ष / F -
वृत्ति : student
प्रमुख वेदना : बिना चश्मा लगाये दृष्टिमांद्यता,नासा स्राव मुहुर्मुह, प्रात: काल शिरो शूल एवं गुरूता, कदाचित अत्यधिक tv देखने पर या पढ़ने से नेत्र गुरूता,चिड़चिड़ाहट ( irritating behaviour),कृश एवं दुर्बल ।
वेदनावृत्त (H/O present illness) : बालिका को लगभग 3 वर्ष से tonsilitis, गल संक्रमण,पीनस,
नासावरोध, पुन: पुन: ज्वर एवं विबंध चला आ रहा था और 6 माह पूर्व ही चश्मा लगा है।
पूर्व व्याधि वृत्त (h/o past illness) : जन्म के समय कामला रोग हुआ था जिसके कारण अनेक दिन तक tube-light एवं रोशनी में रखा गया था, तथा एक वर्ष की अवस्था तक allergic bronchitis की चिकित्सा दी गई थी।
कुल वृत्त - कोई विशिष्ट व्याधि नही।
नाड़ी : पित्त-वात,
निद्रा सम्यक, व्यायाम : अल्प, आकृति : दुर्बल+मध्यम,
त्वक : किंचित रूक्ष, मलप्रवृति: दोपहर में कदाचित विबंध,
मूत्र: सम्यक,स्वेद: सामान्य।
परीक्षा S/e : गल प्रदेश rt.side tonsilitis एवं नासा प्रदेश मे अवरोध
रोग हेतु :- अति शीत, artificial flavour, colored, synthetic एवं अभिष्यंदि पदार्थ जैसे, cold drinks, दही, ketchup, vineger, fast food etc.
रोग निदान :- पीनस जन्य दृष्टिमांद्य
सम्प्राप्ति घटक...प्राण उदान समान वात , पाचक आलोचक पित्त, क्लेदक तर्पक कफ
दूष्य - रस
स्रोतस - अन्न रस
दुष्टि - संग विमार्गगमन
जाठराग्नि - मंद
धात्वाग्नि - रसधात्वाग्निमांद्य
दोष/धातु - साम
अधिष्ठान - आभ्यंतर
कोष्ठ - मध्य
देश - साधारण / जन्म साधारण/ वृद्धि आनूप/ व्याधि
व्याधि काल - वृद्धि ऋतु संधिकाल एवं शीत/ ह्रास ग्रीष्म।
सार - रस रक्त मांस मेद अस्थि मज्जा शुक्र सत्व
10 वर्ष की अवस्था वृद्धिकाल होने से एवं व्याधि का विशिष्ट संबध ना होने से सार, संहनन आदि की विशेष आवश्यकता नही है।
साध्यतासाध्यता - साध्य
चिकित्सा सूत्र - दीपन पाचन कफछेदन कण्ठय चक्षुष्य नस्य बृहंण एवं रसायन।
औषध व्यवस्था :
1.. सितोपलादि चूर्ण 1gm+ टंकण भस्म 100 mg + श्रृंगभस्म 50 mg + सप्तामृत लौह 500 mg+ मधुयष्ठि चूर्ण 1gm मधु से प्रात: 7 बजे एवं सांय 6 बजे।
2.. महात्रिफला घृत 5-5 gm साथ में दिया गया।
प्रात खाली पेट औषध दे कर सुबह b.fast स्कूल में 10:30 पर करती थी और रात्रि भोजन 8 बजे।
3.. सोने से 1 घंटा पूर्व अणु तैल 3-3 बूंद दोनों नाक में नस्य।
4.. गंधक वटी+सुदर्शन घन वटी। भोजन के बाद दोपहर रात 1-1 गोली
5.. कण्ठय के रूप में दिन में दो बार नागरवेल के पान की जड़ का छोटा टुकड़ा चूषणार्थ।
पथ्य - भोजन गौघृत में, गौदुग्ध एवं सात्विक भोजन।
अपथ्य - सर्वप्रथम लिखे रोग के हेतु।
विहार - सुबह जल्दी उठकर 20 मिनट park में नंगे पैर हरी घास पर चलना।
चिकित्सा परिणाम :
Report इस प्रकार मिली...
10-5-2019 : Rt eye CYL +100 AXIS 90
Lt eye CYL + 025 AXIS 90
20-7-2019: clear vision
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