બુધવાર, 19 જૂન, 2019

वास्तु के वैज्ञानिक तथ्य

वास्तु के सिद्धान्त सूर्यकी किरणों और पृथ्वी पर बहने वाली चुम्बकीय तरंगों पर आधारित है। वास्तु के क्षेत्र में न तो आज और न ही भविष्य में ऐसे किसी भी सिद्धान्त के प्रतिपादन की आवश्यकता होगी ।

वास्तु के बारे मे  कुछ सामान्य प्रश्न...

प्रश्न01--- पृथ्वी अपनी धूरी पर घूमती हुई सूर्य की परिक्रमा करती है। अर्थात् पृथ्वी स्थिर नहीं है। ऐसे में वास्तु की प्रासंगिकता क्या है?

उत्तर:---- यह सही है कि पृथ्वी अपनी धूरी पर घूमती हुई सूर्य की परिक्रमा करती है, साथ ही हमारा पूरा सौरमंडल भी आकाशगंगा में अनंत की ओर तेजी से दौड़ रहा है। रेलगाड़ी के कई डिब्बे पटरी पर एक साथ दौड़ते हैं तथा डिब्बों के गतिशील होने पर भी अंदर रखा सामान स्थिर रहता है। गति अचानक कम या ज्यादा होने पर ही सामान में अस्थिरता पैदा होती है जिससे हमारा सामान इधर-उधर बिखर जाता है। इसी प्रकार पृथ्वी अपनी धुरी पर प्रारंभ से ही एक निश्चित गति के साथ ही घूम रही है जिस कारण सभी स्थूल चीजें अपनी जगह स्थिर हैं। वास्तुशास्त्र का मूल आधार विश्वव्यापी पंचतत्त्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश है। इन्हीं पाँच तत्त्वों के अनुरूप घर को बनाना, सजाना, संवारना ही वास्तु कहलाता है।

प्रश्न02----किसी भी प्लाट पर वास्तु का प्रभाव कब और कैसे पड़ता है?

उत्तर:---- उदाहरण के लिए जब जमीन के बड़े भाग पर कोई कोलोनाईजर कॉलोनी काटता है तो पहले वह कागजों पर ही कॉलोनी का प्लान तैयार कर कॉलोनी को लाँच करता है और प्लाट के खरीदारों को कॉलोनी का प्लान दिखा कर प्लॉट्स की बुकिंग करता है, जिसमें यूजर के अलावा कई निवेशक भी शुरू में ही खरीदकर रीसेल के लिए प्लॉट्स की बुकिंग करते है। इस समय तक कॉलोनी में कोई भी निर्माण कार्य नहीं हुआ होता केवल कागजों पर ही कॉलोनी कटी होती है। इसलिए वहाँ केवल खाली जमीन ही होती है। तब तक केवल जमीन की ऊँचाई नीचाई का वास्तु प्रभाव कॉलोनी के भूखण्ड पर पड़ता है। यदि कॉलोनी की जमीन का ढलान उत्तर या पूर्व दिशा की ओर हो तो काॅलोनाइजर उस कॉलोनी के प्लॉट्स को अच्छी कीमत पर बुक कर पाता है और यदि दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर हो तो उसे अच्छी कीमत नहीं मिलती और यही स्थिति निवेशकों के साथ भी बनती है।
इसके बाद जब कोलोनाईजर द्वारा कॉलोनी के चारों ओर कम्पाऊण्ड वाल बना दी जाती है तब कॉलोनी पर कम्पाऊण्ड वाल के घटाव व बढ़ाव का वास्तु प्रभाव भी उस कॉलोनी पर पड़ने लगता है। इस स्थिति में भी कॉलोनी के अंदर कटे छोटे-छोटे भूखण्डों अर्थात् प्लाट पर वास्तु का कोई अलग से विशेष प्रभाव नहीं पड़ता, किंतु जैसे ही कॉलोनी में सड़कों का निर्माण होता है वैसे ही प्रत्येक प्लाट के आकार, प्लाट पर होने वाले मार्ग प्रहार, टी जंक्शन, विथिशुला, डेड एंड इत्यादि स्थितियों का आंशिक प्रभाव प्लॉट्स पर पड़ने लगता है और जब प्लाट पर कम्पाऊण्ड वाल बनती है या प्लाट के आसपास दूसरों के निर्माण कार्य होने के कारण जब प्लाट का एक निश्चित आकार दिखाई देने लगता है तब वह एक पूर्ण वास्तु बन जाता है और उस प्लाट पर तथा उस पर बनने वाले भवन पर वास्तु के सभी सिद्धांत पूर्णतः लागू हो जाते है।

प्रश्न03---- पिछले कुछ दशकों से हो रहे भवन निर्माण में आ रहे बदलावों को दृष्टिगत रखते हुए क्या वास्तु के क्षेत्र में नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन आवश्यक है?

उत्तर:----बिल्कुल नहीं! वास्तु के सिद्धान्त सूर्य की किरणों और पृथ्वी पर बहने वाली चुम्बकीय तरंगों पर आधारित है। वास्तु के क्षेत्र में न तो आज और न ही भविष्य में ऐसे किसी भी सिद्धान्त के प्रतिपादन की आवश्यकता होगी जैसे आज हमारे खाना-पान में भी बहुत अन्तर आ गया है, मिलावट भी बढ़ गई है, शारीरिक श्रम कम हो गया है। इस कारण नित्य नई बीमारियाँ देखने में आ रही है और उनके निदान के लिए उपाए ढूँढे जा रहे है। यदि आज भी किसी व्यक्ति का खान-पान ठीक हो, शारीरिक श्रम या व्यायाम करता हो तो उसे स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई विशेष समस्या नहीं आती क्योंकि जब से मनुष्य पैदा हुआ है उसकी संचरना में प्रकृति ने किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया है। इसी प्रकार वास्तु सिद्धान्त भी कभी नहीं परिवर्तित होगें। आजकल भवन की बनावट इनके अनुकुल न होने के कारण लोगों के जीवन में तनाव, रोग, कलह इत्यादि आमतौर पर देखने को मिल रहे है। ऐसे में सुखद-सरल एवं समृद्धिशाली जीवन के लिए केवल वास्तु सिद्धान्तों का पालन करते हुए भवन को निर्मित करना ही एकमात्र सही तरीका है न की पहले वास्तु सिद्धान्तों के विपरीत निर्माण कर फिर इनके निराकरण के लिए वास्तु के क्षेत्र में नए सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना, जिस तरह काल गणना में भारतीय ऋषि-मुनियों द्वार की गई गणनाएँ आज विज्ञान पूरी तरह स्वीकार करता है, उसी प्रकार वास्तु के सिद्धान्त भी वैज्ञानिक होकर एकदम सही है। बेहतर होगा कि हम नई खोज के नाम पर लोगों में भ्रम पैदा ना करें।

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